नवरात्रि 2025: हर वर्ष नवरात्रि का अपना महत्व है.आज हम कुछ जानकारी नवरात्र के बारे में लाये है. इनमे के बातें आप लोगों को पता है और जो नही पता वो हमे जरूर बताए.
कब-कब होती नवरात्रि
नवरात्रि एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो साल में दो बार मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि (मार्च–अप्रैल) और शारदीय नवरात्रि (सितंबर–अक्टूबर) को भारत भर में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है।
इसके अलावा दो और होती हैं:
- आषाढ़ (गुप्त नवरात्रि)
- माघ (गुप्त नवरात्रि)
नवरात्रि का महत्व: नवरात्रि का अर्थ है – नौ रातें।इसमें माता के नव रूप का दिव्य स्वरूप को बताया गया है, इन नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।इसे बुराई पर अच्छाई की जीत और शक्ति की उपासना का पर्व माना जाता है।
नवरात्रि 2025: तारीख, शुभ मुहूर्त
शारदीय नवरात्रि 2025 की शुरुआत सोमवार, 22 सितंबर 2025 से होगी और इसका समापन गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025 (विजयादशमी) को होगा।
- प्रतिपदा (आरंभ): 22 सितंबर 2025
- अष्टमी: 29 सितंबर 2025
- नवमी: 30 सितंबर 2025
- विजयादशमी (दशहरा): 2 अक्टूबर 2025
- घटस्थापना (कलश स्थापना) शुभ मुहूर्त
- तारीख: 22 सितंबर 2025 (सोमवार)
- समय: सुबह 06:09 बजे से 08:06 बजे तक
- अवधि: 1 घंटा 57 मिनट
हर दिन देवी मां के एक स्वरूप की पूजा की जाती है:
नवरात्रि के 9 दिन और देवी के नौ रूप
- पहला दिन – शैलपुत्री (पर्वतराज हिमालय की पुत्री)
- दूसरा दिन – ब्रह्मचारिणी (तपस्या और साधना की देवी)
- तीसरा दिन – चंद्रघंटा (शांति और साहस का स्वरूप)
- चौथा दिन – कूष्मांडा (सृष्टि की आदिशक्ति)
- पांचवा दिन – स्कंदमाता (कार्तिकेय की माता)
- छठा दिन – कात्यायनी (बल और विजय की देवी)
- सातवां दिन – कालरात्रि (राक्षसों का संहार करने वाली)
- आठवां दिन – महागौरी (शांति और कल्याण की देवी)
- नौवां दिन – सिद्धिदात्री (सिद्धियां और शक्तियां देने वाली देवी है।
प्रमुख परंपराएँ घटस्थापना (कलश स्थापना):
- नवरात्रि का आरंभ यहीं से होता है।उपवास (व्रत): भक्त 9 दिन उपवास या फलाहार करते है|
- गरबा और डांडिया: विशेषकर गुजरात और महाराष्ट्र में रात्रि को नृत्य होता है।
- कन्या पूजन: अष्टमी या नवमी पर 9 छोटी कन्याओं को देवी का रूप मानकर पूजते हैं।
व्रत और भोजन नियम
- व्रत में अनाज, नमक और तैलीय भोजन से परहेज़ किया जाता है।
- फल, दूध, साबूदाना, कुट्टू, सिंघाड़े का आटा, आलू आदि का सेवन किया जाता है।
- अष्टमी/नवमी पर कन्याओं को पूड़ी, चना, हलवा खिलाया जाता है।
नवरात्रि से जुड़े उत्सव
- रामलीला और रामनवमी (चैत्र नवरात्रि)
- दुर्गा पूजा और दशहरा (शारदीय नवरात्रि)
- गरबा/डांडिया उत्सव (गुजरात, राजस्थान)
नवरात्रि के रंग (दिवसवार)/देवी मंत्र
हर दिन एक विशिष्ट रंग पहना जाता है, जिससे उस देवी स्वरूप का आभासी सम्मान किया जाता है। 2025 के लिए नीचे रंगों की सूची है:
- सफेद – शैलपुत्री – “ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः”
- लाल – ब्रह्मचारिणी – “ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः”
- अशोक – चंद्रघंटा – “ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः”
- पीला – कूष्मांडा – “ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः”
- हरा – स्कंदमाता – “ॐ देवी स्कंदमातायै नमः”
- नारंगी / हल्का केसरिया – कात्यायनी – “ॐ देवी कात्यायन्यै नमः”
- नीला – कालरात्रि – “ॐ देवी कालरात्र्यै नमः”
- गुलाबी / गुलाबी लाल – महागौरी – “ॐ देवी महागौर्यै नमः”
- बैंगनी / किस्मिसी – सिद्धिदात्री – “ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः”
नवरात्रि पूजन विधि
- स्नान और संकल्प – सुबह स्नान करके साफ वस्त्र पहनें। संकल्प लें कि 9 दिन माता की आराधना करेंगे।
- कलश स्थापना (घटस्थापना)
- मिट्टी के बर्तन में जौ/गेहूँ/धान बोएँ।
- उसके ऊपर जल से भरा कलश रखें।
- कलश पर आम/अशोक के पत्ते और नारियल रखें।
- कलश पर स्वस्तिक बनाएं और लाल चुनरी बाँधें।
- देवी प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और उसके सामने दीपक जलाएँ।
- नौ दिन पूजा – प्रतिदिन माता के अलग स्वरूप की पूजा करें।
- आरती और भजन – सुबह और शाम देवी की आरती, दुर्गा सप्तशती/दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
- अष्टमी/नवमी पर कन्या पूजन – 9 कन्याओं और 1 लंगूर को भोजन कराएँ, उन्हें चुनरी/बिंदिया/चूड़ी/दक्षिणा दें।
- दशमी को कलश विसर्जन करें।
नवरात्रि में भोग
हर देवी को अलग-अलग भोग अर्पित किए जाते हैं:
- शैलपुत्री – घी
- ब्रह्मचारिणी – शक्कर (Cheeni)
- चंद्रघंटा – दूध व मिठाई
- कूष्मांडा – मालपुआ
- स्कंदमाता – केले
- कात्यायनी – शहद
- कालरात्रि – गुड़
- महागौरी – नारियल
- सिद्धिदात्री – तिल
विशेष बातें:-
- नवरात्रि में तामसिक भोजन, प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा वर्जित है।
- प्रतिदिन दीपक और धूप जलाना जरूरी है।
- नवरात्रि में अखंड ज्योति (एक दीपक 9 दिन लगातार जलाना) भी विशेष महत्व रखता
नवरात्रि की अष्टमी और नवमी का महत्व
अष्टमी का महत्व (दुर्गाष्टमी)
- नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है।
- इसे महाष्टमी या दुर्गाष्टमी भी कहते हैं।
- इस दिन देवी दुर्गा के भव्य रूप का पूजन होता है।
- भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं।
- कई जगहों पर इसी दिन हवन (कुंड में अग्नि पूजन) भी किया जाता है।
- बंगाल और पूर्वी भारत में दुर्गा पूजा का चरम उत्सव इसी दिन होता है।
नवमी का महत्व (महानवमी)
- नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है।
- इसे महानवमी कहा जाता है।
- इस दिन को शक्ति की पूर्णता का दिन माना जाता है।
- बहुत से लोग इस दिन कन्या पूजन (कंजक पूजा) करते हैं।
- नवमी को देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था, इसलिए इसे विजय की प्रतीक तिथि भी माना जाता है।
- कई जगहों पर नवमी के दिन रामलीला का समापन और राम-रावण युद्ध का मंचन होता है।
कन्या पूजन का महत्व (अष्टमी/नवमी पर)
- कन्या को देवी का रूप मानकर पूजा की जाती है।
- 9 छोटी कन्याओं और एक लंगूर (भैरव) को भोजन कराया जाता है।
- उन्हें चुनरी, बिंदी, चूड़ी और दक्षिणा देकर आशीर्वाद लिया जाता है।
- माना जाता है कि कन्या पूजन से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथियाँ विशेष महत्व रखती हैं। अष्टमी को मां महागौरी और नवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इन दोनों दिनों को शक्ति साधना का शिखर माना जाता है। इस समय हवन, दुर्गा सप्तशती पाठ और कन्या पूजन करना सबसे श्रेष्ठ फलदायी माना गया है।
इन दिनों की पूजा से:
- भक्तों को धन, ऐश्वर्य और सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
- जीवन से कष्ट, भय और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- परिवार में सुख-समृद्धि और शांति आती है।
- इसलिए हर भक्त को चाहिए कि नवरात्रि की अष्टमी और नवमी को पूरे श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा करें।